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कन्नौज सीट से बीजेपी के सुब्रत पाठक की चुनौती से कैसे निपटेंगे अखिलेश यादव, बसपा डाल रही अडंगा
राजनीति

कन्नौज सीट से बीजेपी के सुब्रत पाठक की चुनौती से कैसे निपटेंगे अखिलेश यादव, बसपा डाल रही अडंगा

कन्नौज सीट से बीजेपी के सुब्रत पाठक की चुनौती से कैसे निपटेंगे अखिलेश यादव, बसपा डाल रही अडंगा

कन्नौज सीट से बीजेपी के सुब्रत पाठक की चुनौती से कैसे निपटेंगे अखिलेश यादव, बसपा डाल रही अडंगा

 

तमाम सियासी कयासों के बाद आखिरकार समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कन्नौज सीट से चुनाव लड़ने का फैसला किया है। लेकिन बीजेपी नेता सुब्रत पाठक उनके सामने बड़ी चुनौती बनकर खड़े है। तो वहीं बसपा अखिलेश की जीत में अड़ंगा लगा सकती है।

 

खबरीलाल न्यूज डेस्क: समाजवादी पार्टी का गढ़ और राजा हर्षवर्धन के साम्राज्य की राजधानी रही कन्नौज का सियासी मिजाज इस बार कुछ अलग ही नजर आ रहा है। कन्नौज की सियासी लड़ाई में मान सम्मान और प्रतिष्ठा बचाने की जद्दोजहद शुरू हो गई है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने यहां से चुनाव लड़ने का फैसला लिया है । और मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है।  समाजवादी मिजाज के कायल रहे यहां वोटर का मुलायम परिवार से भी लगाओ अधिक है।  इसके बावजूद मोदी योगी के नाम और काम की सुगंध भी यहां की फिजाओं में मिली घुली  दिखती है। मुकाबला को दिलचस्प मोड़ देने का काम बसपा पार्टी ने भी किया है। बसपा ने अपने प्रत्याशी इमरान बिन जफर को कन्नौज सीट से उतारा है।  ऐसे में अखिलेश की जीत पर सेंध लगाने के लिए बसपा ने पूरी तरह से कमर कस ली है। अब देखना यह होगा कि सपा भाजपा के इस मुकाबले में बसपा कितनी अपनी जगह बना पाती है।

 

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अखिलेश का काम बोलता है –

देश के साथ साथ कन्नौज के लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काम के कायल हैं।  लेकिन 15 साल बाद कन्नौज से चुनाव लड़ रहे अखिलेश यादव को जनता जब देखती है तो उनके मुख्यमंत्री कार्यकाल में कराए गए काम याद आते हैं।  उनकी अब भी प्रसंशा होती है।  यही काम काज चुनाव प्रचार के सवाब के आने के साथ ही बढ़ रही है ऐसा प्रतीत होता है कि लोग मतदान के दिन 13 मई आते-आते अपना मन पक्का कर लेंगे।  क्योंकि कन्नौज की जनता के मन के अंदर हमेशा से ही समाजवादी पार्टी रही है लेकिन 2014 के बाद से यहां की कुछ जनता का मिजाज बीजेपी की तरफ बदला है। ऐसे में अखिलेश यादव के लिए जीत आसान नहीं होगी।

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कन्नौज की जनता को मोदी पसंद –

यह बात सच है कि समाजवादी पार्टी का गढ़ रहा कन्नौज का झुकाव हमेशा से ही मुलायम और उनके परिवार की तरफ रहा है। लेकिन कन्नौज की जनता ने समय-समय पर अपने मिजाज को बदलने की भी कोशिश की है। कन्नौज की जनता को अखिलेश तो पसंद है लेकिन उनके दिल में मोदी ने भी जगह बना ली है। नरेंद्र मोदी की राष्ट्र नीति उन्हें बखूबी पसंद आती है। इसलिए बीजेपी ने सुब्रत पाठक को उतार कर अखिलेश यादव की चुनौती को बढ़ा दिया है।  कन्नौज की लड़ाई में यहां अपमान सम्मान बढ़ाने के लिए जद्दोजहद शुरू हो गई है। अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव पिछली बार इसी सीट से चुनाव हारी थी।  इसके बाद जब अखिलेश यादव ने अपने भतीजे तेज प्रताप यादव की उम्मीदवारी घोषित की तो विरोधियों ने तंज किया कि भैया जी भाग गए लेकिन तमाम दलीलों को समझने के बाद अखिलेश यादव ने कन्नौज सीट से चुनाव लड़ने का फैसला किया।

 

त्रिकोणीय मुकाबला बना रही बसपा –

भाजपा के लिए पिछली जीत का सिलसिला बनाए रखना नाक का सवाल बन गया है। मोदी योगी के मैजिक के मजबूत आधार के चलते सुब्रत पाठक भी कम मजबूत नहीं है लेकिन ऐसे में बसपा ने दोनों पार्टियों के  प्रत्याशियों के लिए मुकाबले को और दिलचस्प बना दिया है बसपा ने बहुत सोच समझकर एक मुस्लिम प्रत्याशी को उतारा है। बसपा ने 2000 में अखिलेश यादव के सामने अकबर अहमद डंपी को उतारा था।  अब फिर मुस्लिम प्रत्याशी इमरान बिन जफर को उतार कर उसने मुकाबला को और दिलचस्प बना दिया है। ऐसे में बसपा समाजवादी पार्टी के वोटो पर सेलगा सकती है।

 

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